भारत में एफएम रेडियो का आगमन और कम्युनिटी रेडियो की भूमिका

भारत में रेडियो प्रसारण की शुरुआत 1923 में हुई थी, लेकिन एफएम (फ्रीक्वेंसी मॉडुलेशन) रेडियो का दौर 1995 के बाद जोर पकड़ने लगा। 90 के दशक के मध्य में जब पहली बार प्राइवेट एफएम चैनल्स लांच हुए, तो शहरी युवाओं के लिए रेडियो सुनने का अनुभव पूरी तरह सुनहरा बन गया। तेज, स्पष्ट आवाज़, मनचाहे गाने, और नए-नए आरजे की बोलती शैली—एफएम रेडियो ने पारंपरिक एएम रेडियो से अलग अपनी एक अनोखी पहचान बनाई।

एफएम चैनल्स ने मनोरंजन ही नहीं, सूचना, शिक्षा और सामाजिक जागरण के क्षेत्र में भी अहम योगदान दिया। “रेडियो मिर्ची,” “रेडियो सिटी,” “रेड एफएम,” “बिग एफएम” जैसे चैनलों ने हर शहर, कस्बे के युवा को जोड़ा और स्थानीय संस्कृति का जश्न मनाया।

लेकिन, जिन इलाकों की पहुंच इन बड़े चैनलों तक नहीं थी, वहां कम्युनिटी रेडियो का महत्व और भी बढ़ गया। भारत में कम्युनिटी रेडियो की शुरुआत 2004 में हुई, जब सरकार ने निजी संस्थाओं, शिक्षण संस्थानों और एनजीओ को प्रसारण लाइसेंस देना शुरू किया। ये रेडियो स्टेशन छोटे क्षेत्रों, गांवों या कस्बों में चलते हैं और पूरी तरह स्थानीय भाषा, संस्कृति और समस्याओं पर केंद्रित होते हैं।

कम्युनिटी रेडियो ने ग्रामीण भारत को संवाद, जानकारी और जागरूकता का मंच दिया। खेती-किसानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, अन्य स्थानीय मुद्दों पर चर्चा होती है और लोग अपनी बात सीधे प्रसारण के जरिए रख सकते हैं।

आज देश में 500 से अधिक कम्युनिटी रेडियो स्टेशन सक्रिय हैं, जो रेडियो को लोक मिसाल बनाते हैं। ये न सिर्फ आवाज़ पहुंचाते हैं, बल्कि समाज को जोड़ते हैं, सशक्त बनाते हैं।

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