रेडियो के साथ बचपन की यादें: एक अनोखा अनुभव
बचपन की उन सर्दियों की सुबहें आज भी याद हैं, जब घर के किसी कोने में रेडियो की धीमी आवाज कानों में गूंजती रहती थी। स्कूल जाने की जल्दी होती थी, मगर पापा जब रेडियो पर समाचार सुनते थे, तब लगता था कि दुनिया की सारी खबरें हमारे इसी छोटे से कमरे में आ गई हैं।
रेडियो पर विविध भारती, आकाशवाणी या फिर स्थानीय एफएम चैनल—हर आवाज़ में अपनापन महसूस होता था। रविवार की छुट्टी पर ‘बिनाका गीतमाला’ सुनना किसी त्यौहार से कम नहीं था। चर्चित गानों की सूची सुनकर पूरा परिवार एक साथ हंसता-गुनगुनाता था।
मेरी दादी भी अपने पसंदीदा भजन सुनने के लिए रेडियो के पास बैठ जाती थीं। कभी-कभी रेडियो में गड़बड़ होती तो एंटीना घुमाकर सही सिग्नल ढूंढ़ने का रोमांच भी अलग ही था। रेडियो की आवाज़ के साथ जैसे पूरे परिवार की हर सुबह शुरू होती थी, वैसे ही हमारी यादों में रेडियो हमेशा खास रहेगा।
आज स्मार्टफोन और इंटरनेट के दौर में भी रेडियो का जादू कम नहीं हुआ है। वो बचपन की बातें, गानों की मांग भेजना, प्रिय आरजे की आवाज़, और फेरीवालों की आवाज़—सब आज भी दिल के करीब हैं।
आपकी भी कोई रेडियो की बचपन की याद है? ज़रूर साझा करें! रेडियो, बचपन और यादों का संगम — यही है हमारी असली भारतीय कहानी।

1950s :: Villagers Listening to News On All India Radio. Radio Set Is Hanging On a Tree
